The Guiding Principles for Children on the Move in the Context of Climate Change नामक इन दिश- निर्देशों में नौ ऐसे सिद्धान्त शामिल किये गए हैं जो ऐसे लड़कों व लड़कियों की विशिष्ट और अनेक परतों वाली कमज़ोरियों पर ध्यान देंगे जिन्हें जलवायु परिवर्तन के विकट प्रभावों के परिणामस्वरूप, अपने स्थानों से हटना पड़ता है, चाहे वो देश के भीतर हों या सीमा पार.
ये दिशा-निर्देश, सोमवार को अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ़, ज्यॉर्जटाउन विश्वविद्यालय (वाशिंगटन डीसी) और संयुक्त राष्ट्र विश्व विद्यालय (टोक्यो, जापान) ने संयुक्त रूप से जारी किये हैं.
भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा
इन साझीदार एजेंसियों ने बताया है कि इस समय बच्चों से सम्बन्धित ज़्यादातर प्रवासन नीतियों में, जलवायु और पर्यावरणीय कारक शामिल नहीं हैं, जबकि ज़्यादातर जलवायु परिवर्तन नीतियों में भी, बच्चों की विशिष्ट ज़रूरतों को नज़रअन्दाज़ किया जाता है.
अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन के महानिदेशक एंतोनियो वितोरीनो का कहना है, “जलवायु आपदा ने मानव प्रवासन के लिये, सघन प्रभाव छोड़े हैं और आगे भी ऐसा जारी रहेगा. ख़ासतौर से हमारे समुदायों के महत्वपूर्ण घटक - बच्चों पर बहुत गहरे असर होंगे; हम भविष्य की पीढ़ियों को ख़तरे में नहीं डाल सकते.”
एंतोनियो वितोरीनो ने कहा कि अलबत्ता, प्रवासन के शिकार बच्चों को जब जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में विस्थापित होना पड़ता है तो वो विशेष रूप से कमज़ोर हालात के शिकार होते हैं, फिर भी उनकी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को नीति चर्चा में नज़र अन्दाज़ किया जाता है.
उन्होंने कहा, “इन दिशा-निर्देशक सिद्धान्तों के ज़रिये, हमारा उद्देश्य, उनकी आवश्यकताओं और अधिकारों की दृश्यता सुनिश्चित करना है – नीति चर्चा और कार्यक्रम निर्माण दोनों स्तर पर."
"जलवायु, पर्यावरणीय क्षय और आपदाओं के सन्दर्भ में बच्चों के विस्थापन पर ध्यान देना और प्रवासन का प्रबन्धन करना, एक विशाल चुनौती है और हमें उससे तत्काल निपटना होगा.”
युव जीवन जोखिम में
जलवायु परिवर्तन, मौजूदा पर्यावरणीय, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और भौगोलिक परिस्थितियों के साथ मिलकर और भी ज़्यादा जटिल हो रहा है और इन कारकों का, लोगों के प्रवासन या विस्थापित होने के निर्णयों में विशाल हाथ है.
केवल वर्ष 2020 में ही, मौसम सम्बन्धी झटकों के बाद, लगभग एक करोड़ बच्चों को विस्थापित होना पड़ा था.
उनके अतिरिक्त दुनिया भर की लगभग दो अरब 20 करोड़ की बाल आबादी के क़रीब आधे हिस्से यानि लगभग एक अरब लड़के और लड़कियों को, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के उच्च जोखिम में जीना पड़ रहा है, और ये 33 देशों में बसते हैं.
साझीदार एजेंसियों ने आगाह किया है कि आने वाले वर्षों में, लाखों और बच्चे भी, प्रवास या विस्थापन के लिये विवश हो सकते हैं.
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशिका कैथरीन रसैल का कहना है, “हर दिन समुद्रों का बढ़ता जल स्तर, तूफ़ान, जंगली आगें, और नाकाम होती फ़सलों की परिस्थितियाँ, और ज़्यादा बच्चों और उनके परिवारों को उनके घरों से दूर कर रही हैं.”
उनका कहना है, “विस्थापित बच्चे, दुराचार, तस्करी, और शोषण के शिकार होने के उच्चे जोखिम में होते हैं. उनके शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल से वंचित होने की भी बहुत सम्भावना है. और अक्सर उन्हें बाल विवाह या बाल श्रम में भी धकेल दिया जाता है.”
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