संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने अक्टूबर 2021 में इसी तरह के मसौदे का ऐतिहासिक प्रस्ताव अपनाया था जिसके बाद, कोस्टा रीका, मालदीव, मोरक्को, स्लोवीनिया और स्विट्ज़रलैण्ड ने, गत जून में, संयुक्त राष्ट्र के सबसे प्रतिनिधि निकाय,193 सदस्यों वाली महासभा के समक्ष मसौदा पेश किया था.
यह प्रस्ताव, एक स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण के अधिकार को, समस्त मानवाधिकार हासिल करने हेतु, एक अतिआवश्यक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देता है, और सभी देशों व अन्तरराष्ट्रीय संगठनों से, नीतियाँ अपनाने एवं और सर्वजन के लिये स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ वातावरण सुनिश्चित करने के प्रयासों को बढ़ावा देने का आहवान करता है.
लेकिन संयुक्त राष्ट्र के तमाम देशों के लिये, इस अधिकार को मान्यता देना क्यों महत्वपूर्ण है? और दुनिया भर के लोगों के लिये इस संकल्प को अपनाने का क्या मतलब होगा? यूएन न्यूज़ ने मानवाधिकार और पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयेर, डेविड बॉयड से बातचीत में, कुछ ऐसे ही सवाल पूछे.
तो, महासभा क्या कार्रवाई कर रही है?
डेविड बॉयड: स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण के अधिकार को मान्यता देने पर मतदान होने की सम्भावना है. इस अधिकार को 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में शामिल नहीं किया गया था. ऐसे में, यह वास्तव में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव है, जो अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून की प्रकृति ही बदल देगा.
देशों को इस प्रस्ताव के लिये 'हाँ' में मतदान करना क्यों महत्वपूर्ण है?
यह महत्वपूर्ण है क्योंकि हम तिहरे पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहे हैं – तेज़ी से बढ़ता जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का नुक़सान और व्यापक ज़हरीला प्रदूषण, जो हर साल 90 लाख लोगों की मौत का कारण बन रहा है. हमें समाज में परिवर्तनशील बदलावों की आवश्यकता है, हमें जल्दी से जल्दी नवीकरणीय ऊर्जा अपनानी होगी.
हमें एक वृत्ताकार अर्थव्यवस्था अपनाने की भी आवश्यकता है, और हमें समाज को प्रदूषण-मुक्त करना ज़रूरी है. साथ ही, सरकारों की जवाबदेही तय करने के लिये, एक स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार, सबसे शक्तिशाली साधनों में से एक है.
महासभा के प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं हैं, जिसका अर्थ है कि देशों को उनका पालन करना क़ानूनन ज़रूरी नहीं है, तो उन्हें जवाबदेह कैसे ठहराया जा सकता है?
देशों का कोई क़ानूनी दायित्व नहीं है, लेकिन उनका नैतिक दायित्व है.
हमारे सामने ट्रैक रिकॉर्ड है जिसमें हम देख सकते हैं कि 2010 में, महासभा ने सर्वजन के लिये पानी और स्वच्छता के अधिकार पर पहली बार प्रस्ताव पारित किया था.
वह प्रस्ताव भी क़ानूनी रूप से बाध्यकारी या लागू नहीं किया जा सकता था, लेकिन इसने सकारात्मक परिवर्तनों का सिलसिला शुरू करने के लिये एक उत्प्रेरक के रूप में काम किया, जिससे लाखों लोगों के जीवन में सुधार आया.
ऐसा इसलिये है, क्योंकि इस प्रस्ताव की प्रतिक्रिया में, देशों ने अपने संविधान, अपने उच्चतम और बड़े से बड़े क़ानूनों को बदला. कोस्टा रीका, फिजी, मैक्सिको, स्लोवीनिया, ट्यूनीशिया और अन्य देशों ने भी ऐसा किया.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि देशों ने लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के अपने दायित्वों को पूरा करने के लिये, वास्तव में इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी है. इसलिये, [उदाहरण के लिये] मैक्सिको में, सरकार ने न केवल अपने संविधान में इस अधिकार को मान्यता दी बल्कि पिछले दशक में एक हज़ार से अधिक ग्रामीण समुदायों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिये, गाँव के लोगों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर काम किया है.
कैनेडा ने भी पिछले एक दशक में, 130 से अधिक समुदायों के बीच, पानी और स्वच्छता के बुनियादी ढाँचे के उन्नयन के लिये, स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम किया है.
इसलिये, ये प्रस्ताव सामान्य लग सकते हैं, लेकिन यह कार्रवाई को प्रेरित करते हैं, और आम लोगों को, बहुत शक्तिशाली तरीक़े से सरकारों की जवाबदेही तय करने का अधिकार देते हैं.
मानवाधिकार परिषद ने 2021 में, स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को अपनाया, क्या तब से आपने राष्ट्रीय स्तर पर कोई बदलाव देखे हैं?
मुझे लगता है कि कुछ सकारात्मक घटनाक्रम हुए हैं. निश्चित ही, स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार पर पहले से कहीं ज़्यादा चर्चा हो रही है.
ऐसे भी देश हैं जो इसे अपनी क़ानूनी प्रणालियों में शामिल करना शुरू कर रहे हैं और ज़मीनी स्तर पर ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस अधिकार का उपयोग यह तर्क देने के लिये कर रहे हैं कि उनकी सरकार को मज़बूत जलवायु कार्रवाई करनी चाहिये, वायु गुणवत्ता बेहतर बनानी चाहिये व जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र की बेहतर देखभाल करनी चाहिये.
इस तरह के असर रातों-रात होने वाले तो नहीं हैं, लेकिन हमें कुछ शुरुआती लाभ दिखने शुरू हो गए हैं.
मतदान से पहले, सभी देशों को आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?
यदि दुनिया के हर देश ने इस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया और फिर इसके पक्ष में मतदान किया तो यह आदर्श स्थिति होगी. उससे यह स्पष्ट होगा कि दुनिया का हर देश यह समझता है कि मानव जाति के भविष्य के लिये एक स्वस्थ वातावरण कितना महत्वपूर्ण है.
क्या ऐसी भी आशंका है कि कोई देश 'नहीं' में भी वोट कर सकता है? क्या इस प्रस्ताव को लागू करने में कोई चुनौतियाँ हैं?
सभी देशों की अलग-अलग चुनौतियाँ हैं. इसलिये, कुछ देश ऐसे हैं जिनका मानवाधिकारों के बारे में बहुत रूढ़िवादी दृष्टिकोण है.
फिर कुछ ऐसे देश हैं जो प्रमुख तेल और गैस उत्पादक हैं, जिन्हें शायद इस अधिकार को मान्यता देने पर अपने ऊपर होने वाले असर को लेकर कुछ आशंकाएँ हैं - इसलिये, वे कुछ ऐसे देश हो सकते हैं जो शायद इस प्रस्ताव का समर्थन करने में हिचकिचाएँ.
स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में क्यों मान्यता दी जानी चाहिये?
इस ग्रह पर मौजूद असंख्य लोगों का जीवन, जलवायु संकट और पर्यावरण क्षरण से प्रभावित है. वास्तव में, अरबों लोग आज ऐसी हवा में साँस ले रहे हैं जो इतनी प्रदूषित है कि यह उनकी जीवन प्रत्याशा को वर्षों तक कम कर देगी.
दुनिया भर में, अरबों लोगों के पास अब भी साफ़ पानी या पर्याप्त पानी नहीं है. दुनिया भर में अरबों लोग, स्वस्थ और टिकाऊ तरीक़े से उत्पादित भोजन नहीं खा रहे हैं, और जैव विविधता की हानि से हम सभी पर असर पड़ रहा है.
लोगों को यह समझने की ज़रूरत है कि जैव विविधता वास्तव में इस ग्रह पर जीवन का आधार है. यदि ऑक्सीजन पैदा करने वाले यह पेड़-पौधे नहीं होंगे, तो हम साँस नहीं ले पाएंगे. यदि पानी को स्वच्छ करने वाला यह पारिस्थितिक तंत्र नहीं होगा, तो हम बहुत गहरे संकट में फँस जाएँगे.
सच यह है कि मनुष्य के फलने-फूलने के लिये, एक सुरक्षित और रहने योग्य जलवायु ज़रूरी है.
इसलिये यह अधिकार इतना महत्वपूर्ण है. सरकारों ने दशकों से पर्यावरण को साफ़ करने और जलवायु आपातकाल को सम्बोधित करने के वादे किये हैं, लेकिन एक स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार होने से, लोगों के इस दृष्टिकोण को, सरकारों से भीख मांगने की बजाय, उनसे अधिकारपूर्वक कार्रवाई की मांग करने में तब्दील कर देता है.
यदि प्रस्ताव पारित हो गया तो आप क्या करेंगे?
ओह! मैं ख़ुशी से झूम उठूंगा. मैं इस बात से बहुत उत्साहित हो जाऊंगा कि इससे पूरे ग्रह पर लोगों के जीवन की गुणवत्ता बढ़ेगी और सुधरेगी.
संयुक्त राष्ट्र के भीतर आहवान
संयुक्त राष्ट्र के अन्य विशेषज्ञ और विशेष रैपोर्टेयेर, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) की प्रमुख, इंगेर एण्डरसन, व मानवाधिकार उच्चायुक्त, मिशेल बाशेलेट ने पिछले महीनों के दौरान, एक स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को मान्यता देने के लिये अपना समर्थन व्यक्त किया है.
गत जून में हुए स्टॉकहोम +50 सम्मेलन में यह भी सिफ़ारिश की गई थी कि देश "स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण के अधिकार को मान्यता देकर लागू किया जाए."
इस कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र महासचिव, एंतोनियो गुटेरेश ने, अपने साझा एजेण्डा और मानवाधिकारों पर कार्रवाई के आहवान में, प्राथमिकता बनाकर शामिल किया है.
डेविड बॉयड जैसे संयुक्त राष्ट्र के विशेष रैपोर्टेयर को, जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद द्वारा विशिष्ट विषयगत या देश के शासनादेश पर काम सौंपा जाता है, जहाँ वे तथ्य-खोज या निगरानी मिशन पर रिपोर्ट तैयार करके सौंपते हैं. ये पद मानवाधिकार परिषद के विशेष प्रक्रिया अनुभाग के अन्तर्गत मानद हैं और पदाधिकारियों को उनके काम के लिये संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन भुगतान नहीं किया जाता है.
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